मधुमास
चम्पई चेतना लिए,
आया है प्यारा मधुमास.
भावों का गीत लिए ,
जीवन संगीत लिए,
आशावंती बहार,
मंद मधुर मीत जिए
सुरमई साँझ ढले मुखरित शुभ हास ।
आया है प्यारा मधुमास |
भोर के अनूठे रंग ,
प्रतिपल मधुरिम विकास ,
मर्मस्पर्शी मुद-हास,
जीवन का सुख सुहास|
कोकिल की तन लिए, पपीहा की पीर,
आया है न्यारा सुख हास|
आया है प्यारा मधुमास |
Wednesday, February 11, 2009
"गीतकार अवधेश की रचनाएँ अंतर-हृदय की चेतना"

"गीतकार अवधेश की रचनाएँ अंतर-हृदय की चेतना"
आत्मकथा : हिन्दी साहित्य की चेतना को सवांरने और माँ भारती के चरणों में शब्दांजलि अर्पण करने का सौभाग्य अवधेशजी को प्राप्त हुआ है | इन्होंने अन्तर सरगम के तारों की झंकार से प्रतिध्वनित शब्दों के सरगमी- वातावरण में माँ के अंतर्नाद को सुना है, समझा है और पहचाना है | नैसर्गिक अनुगूँजों और ह्रदय के भावों से मुखरित हैं, शायद इनकी ये रचनाएँ, जो आत्मसाधना का पर्याय बनकर जन्म जन्मान्तर तक साधक के दो मुक्तक लिए साधना पर्याय बन सकें |
अधर घावों को सियेगा आदमी,
पीर का मधुकर पिएगा आदमी|
तुम निरंतर जीवनी के अमर गीतों में,
जियोगे जब तक जियेगा आदमी ||
..तट का साथ कहाँ तक दोगे,
साथ वही पनघट तक दोगे|
बहुत दिया यदि साथ आपने,
साथ वही मरघट तक दोगे ||
नाम: अवधेश शुक्ल
उपनाम :"अवधेश"
जन्म स्थान : सीतापुर नगर
पिताश्री का नाम : पंडित मथुरा प्रसाद शुक्ल
योग्यता : एम ० ए ०, विशारद ,
रत्न हिन्दी साहित्य (आयुर्वेद एवं साहित्य )
( कानपूर विश्वविद्यालय)
विशिष्ट प्रेरणा : पद्म विभूषण आचार्य ठा० जयदेव सिंह
काव्य गुरु : साहित्य भूषण डा0 श्याम सुंदर मिश्र (मधुप )
विशेष कार्य : भारत नेपाल के सीमावर्ती वन्य आच्छादित क्षेत्र में बसे
थारू जन जाती का सांस्कृतिक अध्ययन |
सम्मान: दर्जनों साहित्यिक रास्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय
साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं
द्वारा सम्मानित और अभिनंदित |
अति विशिष्ट : नेपाल और तिब्बत के संबंधों पर आलेख, वाचन, कविताओं का प्रसारण और विभिन्न लिए गए साक्षात्कार , आकाशवाणी/दूरदर्शन एवं मंचों से ललित ह्रदय स्पर्शी काव्यपाठ |
अन्यान्य : तीन दशकों से ऊपर समर्पित , साहित्यिक सामाजिक साधना /संयोजन व् सञ्चालन /पयर्टन व रचनात्मक पत्रिकाओं का संपादन कार्य |
प्रस्तुतकर्ता
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
आत्मकथा : हिन्दी साहित्य की चेतना को सवांरने और माँ भारती के चरणों में शब्दांजलि अर्पण करने का सौभाग्य अवधेशजी को प्राप्त हुआ है | इन्होंने अन्तर सरगम के तारों की झंकार से प्रतिध्वनित शब्दों के सरगमी- वातावरण में माँ के अंतर्नाद को सुना है, समझा है और पहचाना है | नैसर्गिक अनुगूँजों और ह्रदय के भावों से मुखरित हैं, शायद इनकी ये रचनाएँ, जो आत्मसाधना का पर्याय बनकर जन्म जन्मान्तर तक साधक के दो मुक्तक लिए साधना पर्याय बन सकें |
अधर घावों को सियेगा आदमी,
पीर का मधुकर पिएगा आदमी|
तुम निरंतर जीवनी के अमर गीतों में,
जियोगे जब तक जियेगा आदमी ||
..तट का साथ कहाँ तक दोगे,
साथ वही पनघट तक दोगे|
बहुत दिया यदि साथ आपने,
साथ वही मरघट तक दोगे ||
नाम: अवधेश शुक्ल
उपनाम :"अवधेश"
जन्म स्थान : सीतापुर नगर
पिताश्री का नाम : पंडित मथुरा प्रसाद शुक्ल
योग्यता : एम ० ए ०, विशारद ,
रत्न हिन्दी साहित्य (आयुर्वेद एवं साहित्य )
( कानपूर विश्वविद्यालय)
विशिष्ट प्रेरणा : पद्म विभूषण आचार्य ठा० जयदेव सिंह
काव्य गुरु : साहित्य भूषण डा0 श्याम सुंदर मिश्र (मधुप )
विशेष कार्य : भारत नेपाल के सीमावर्ती वन्य आच्छादित क्षेत्र में बसे
थारू जन जाती का सांस्कृतिक अध्ययन |
सम्मान: दर्जनों साहित्यिक रास्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय
साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं
द्वारा सम्मानित और अभिनंदित |
अति विशिष्ट : नेपाल और तिब्बत के संबंधों पर आलेख, वाचन, कविताओं का प्रसारण और विभिन्न लिए गए साक्षात्कार , आकाशवाणी/दूरदर्शन एवं मंचों से ललित ह्रदय स्पर्शी काव्यपाठ |
अन्यान्य : तीन दशकों से ऊपर समर्पित , साहित्यिक सामाजिक साधना /संयोजन व् सञ्चालन /पयर्टन व रचनात्मक पत्रिकाओं का संपादन कार्य |
प्रस्तुतकर्ता
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
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